मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 47

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एपिसोड 47 — “दरभंगा की हवेली में लौटती रूहें”(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)--- 1. नीली सुबह और पुरानी हवेलीदरभंगा की हवेली फिर से ज़िंदा थी।रात की नमी अब सुबह की हल्की ठंडक में बदल चुकी थी।आँगन के बीच रखे पुराने दीये अब भी जल रहे थे —मानो किसी ने रात भर पहरा दिया हो।आर्या राठौर खिड़की के पास बैठी थी।बारिश की बूँदें खिड़की के शीशे पर गिरकरअंदर कमरे में नीली रोशनी का जाल बुन रही थीं।उसने अपनी हथेली खोली —वही नीली कलम अब भी वहाँ थी,जिसकी निब से हल्की स्याही टपक रही थी।“आज भी इसमें गर्मी है…”आर्या