अधुरी खिताब - 44

  • 861
  • 1
  • 348

एपिसोड 44 — “कलम जो खुद लिखने लगी”(सीरीज़: अधूरी किताब)---1. लौटना — मगर सब कुछ बदला हुआदरभंगा की हवेली पीछे छूट चुकी थी,मगर उसकी रूह अब नेहा के भीतर बस चुकी थी।ट्रेन दिल्ली की ओर बढ़ रही थी।खिड़की से नीला आसमान, और हवा में स्याही की गंध थी।नेहा की उँगलियाँ अब भी नीली थीं —जैसे उसने किसी और की जिंदगी लिख दी हो।उसके सामने लैपटॉप खुला था।स्क्रीन पर “Untitled Document” झिलमिला रहा था,पर नेहा ने अब तक कुछ नहीं लिखा था।अचानक —कर्सर अपने आप चलने लगा।लिखा आने लगा —> “कहानी अब हवेली से निकल चुकी है,अब वो हर लेखक