कांचा - भाग 2

 कांचा — भाग 2लेखक — राज फुलवरेअध्याय 1 — सच्चे दिल की शुरुआतनेपाल की वादियाँ हमेशा की तरह शांत थीं। सुबह का सूरज धीरे-धीरे पहाड़ियों के पीछे से निकल रहा था। चाय के बागान पर फैली धुंध जैसे धरती को चूम रही थी। हवा में ताज़ी मिट्टी और कच्चे चाय पत्तों की खुशबू घुली हुई थी। पक्षियों की चहचहाहट के बीच दूर से एक परिचित आवाज़ गूंजी —“कांचा! थोड़ा जल्दी करो, हमें फैक्ट्री पहुँचना है।”वो आवाज़ सुमित्रा की थी — वही जो कभी दिल्ली की बिज़नेस मीटिंग्स में सटीक जवाब देने वाली सख़्त लड़की थी, अब नेपाल के पहाड़ों में