बारिश अब भी कॉलेज की पुरानी दीवारों को छूकर गिर रही थी,जैसे हर बूँद पिछले मौसम की कोई अधूरी बात दोहरा रही हो।Prakhra की diary अब उसके लिए routine बन गई थी —हर पन्ने में Aarav का ज़िक्र, हर line में उसकी मुस्कान।वो खुद से पूछती, “क्या ये सिर्फ़ दोस्ती है... या कुछ ज़्यादा?”पर जवाब हमेशा एक ख़ामोशी में बदल जाता —वही ख़ामोशी जो पहली नज़र में शुरू हुई थी। हर दिन की मुलाक़ातें अब आदत बन चुकी थीं।क्लास में साथ बैठना, library की वही खिड़की,canteen की चाय की ख़ुशबू और बीच-बीच में छोटी-छोटी बातें।Aarav ज़्यादा नहीं बोलता था,पर उसकी