वो इश्क जो अधूरा था - भाग 7

रात गहराने लगी थी। हवेली के पुराने कमरों में से एक में रखा ग्रामोफोन अपने आप चल पड़ा। न कोई पास था, न कोई स्पर्श। फिर भी उस पर एक रेकॉर्ड घूमने लगा — और एक बेहद पुरानी, धुंधली आवाज़ हवाओं में तैरने लगी —"जिसे पाया नहीं… वही रूह बन गया..."अपूर्व बुरी तरह से घबराया हुआ था । अन्वेषा अब भी बेहोश पड़ी थी, लेकिन उसका चेहरा किसी असहज सपने से भीग रहा था। उसका माथा पसीने से तर था।अपूर्व धीरे से आगे बढ़ा । वो आवाज़ अब भी हवेली में कहीं दूर बज रही थी, जैसे दीवारों से टकराकर