तौफ़ीका बेग़म की आँखों में एक बुझी हुई चिंगारी फिर से भड़क उठी। उसकी आवाज़ काँप रही थी, “फरज़ाना... मेरी छोटी बहन थी।”“क्या?” अपूर्व के होठों से निकला।“हाँ... और वही शायद आख़िरी इंसान थी जो रुखसाना की मौत की रात मौजूद थी... और फिर रहस्यमयी तरीक़े से गायब हो गई...”पुराने संदूक से निकली चिट्ठी अपूर्व के हाथ में थी, लेकिन उसके शब्द अब धुंधले लगने लगे थे। हवेली में अचानक एक सिहरन सी फैल गई। तौफ़ीका बेग़म की आत्मा उसी तरह खड़ी थी—स्थिर, मगर उसकी आँखों में कोई अनकहा तूफान घूम रहा था।"तुम कह रही थीं... फरज़ाना?" अपूर्व ने फिर