वो इश्क जो अधूरा था - भाग 5

तेज़ हवा के थपेड़ों के बीच हवेली का पुराना लकड़ी का दरवाज़ा ज़ोर से भड़भड़ाया और फिर चरमराता हुआ खुल गया। एक साया भीतर दाख़िल हुआ — तौफ़ीका बेग़म। झुलसा हुआ चेहरा, आँखों में जली हुई रातों की राख, और चाल में मातम की गूंज। उसके चेहरे पर वक्त की जली रेखाएँ, पीड़ा, क्रोध और रहस्य की मोटी परतें साफ़ नज़र आ रही थीं।उसकी आवाज़ टूटी हुई पर तल्ख़ थी, "तू अब भी उसे नहीं पहचानता, आगाज़?"अपूर्व को जैसे किसी अदृश्य झटके ने पीछे धकेल दिया। उसका शरीर कांप उठा। "मैं अपूर्व हूँ... कोई आगाज़ नहीं... ये सब क्या हो