एपिसोड 44 — “कलम जो खुद लिखने लगी”(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)--- 1. लौटना — मगर सब कुछ बदला हुआदरभंगा की हवेली पीछे छूट चुकी थी,मगर उसकी रूह अब रूहाना और अर्जुन के भीतर बस चुकी थी।ट्रेन दिल्ली की ओर बढ़ रही थी।खिड़की से नीला आसमान, बादलों में तैरती धूप —सब कुछ किसी नई शुरुआत की तरह था।रूहाना की गोद में वही पेन रखा था — Ruh-e-Kalam।वो बार-बार उसे देख रही थी,जैसे उसमें किसी अदृश्य धड़कन को महसूस कर रही हो।अर्जुन ने मुस्कराकर पूछा,“अब भी डर लग रहा है?”रूहाना ने धीमे स्वर में कहा,“डर नहीं… बस अजीब-सी