एपिसोड 42 — “वक़्त की परछाइयों में लिखा इश्क़”(कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रुमानियत है)--- 1. नई लय की शुरुआतदिल्ली की ठंडी शाम थी।रूहाना अपने स्टूडियो “रूह की कलम” की खिड़की के पास बैठी थी।सामने रखे कैनवास पर अधूरी पेंटिंग थी —दो रूहें, जो एक-दूसरे की ओर बढ़ रही थीं,मगर बीच में नीली रोशनी की दीवार थी।वो उस पेंटिंग को निहार रही थी जब अर्जुन ने पीछे से कहा,“अब भी वही रंग?”रूहाना मुस्कराई,“कुछ कहानियाँ खत्म होकर भी अधूरी रह जाती हैं, अर्जुन।”अर्जुन ने उसके पास आकर ब्रश थामा,“तो चलो, उन्हें पूरा करते हैं — अपने रंगों से।”उसने नीली रेखा