ख़ूबसूरत टकराव

 “तुम जैसे लोग दूसरों की ज़िंदगी से खेलते हो, और सोचते हो सबकुछ ख़रीद सकते हो… लेकिन याद रखना, मैं बिकने वालों में से नहीं हूँ।”उसकी आवाज़ धीमी थी, मगर हर लफ्ज़ में आग थी।सामने खड़ा था कबीर मल्होत्रा — ठंडी निगाहें, बेमिसाल आत्मविश्वास, और वो खामोशी जो किसी तूफ़ान से कम नहीं लगती थी।कबीर ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया,> “और तुम जैसे लोग हमेशा ये भूल जाते हो कि दुनिया सिर्फ़ सच से नहीं, राज़ों से चलती है…”नैना शाह ने पलटकर कहा,> “तो फिर आज मैं तुम्हारा सबसे बड़ा राज़ खोलने आई हूँ।”कमरे में सन्नाटा छा गया।सिर्फ़