संध्या का समय था। सूरज ढल चुका था, और हल्की-हल्की हवा खिड़की के परदे हिला रही थी। राघव अपनी पुरानी अलमारी की सफाई कर रहा था। धूल से ढके कागज़, किताबें और कुछ पुराने फोटो... सब एक-एक करके उसके सामने आ रहे थे। तभी उसे एक लिफ़ाफ़ा दिखा — पीला पड़ चुका था, कोनों से मुड़ा हुआ। उस पर लिखा था —“प्रिय राघव के लिए — साक्षी”राघव के हाथ ठिठक गए। उसकी आँखों में एक पल के लिए वही पुरानी चमक लौट आई। कॉलेज के दिन, बारिश की वो शामें, और साक्षी की हँसी — सब याद आ गया।उसने धीरे