सुबह की धूप कपूर हवेली की दीवारों तक नहीं पहुँच पाई थी। आसमान अब भी बादलों से ढका था, मानो कोई अदृश्य साया पूरे घर को ढक कर बैठा हो।हवेली के बाहर पुलिस की गाड़ियाँ, अन्दर फुसफुसाहटों का माहौल।दीवारों पर पुराने चित्र, जिनकी आँखें मानो सब कुछ देख रही थीं।राजेश का शव अब जा चुका था, लेकिन उसकी मौजूदगी हवा में तैर रही थी।हर कोना उसके गुस्से और डर की कहानी कह रहा था।सविता धीरे-धीरे कमरे में आईं, उनके हाथ काँप रहे थे। उन्होंने राजेश की कुर्सी पर हाथ रखा —“तू भी चला गया, बेटा… और अब ये घर सच