अध्याय 2 – रात का सन्नाटा और पहली मौतरात आधी बीत चुकी थी। हवेली के ऊपर काले बादल इस तरह मंडरा रहे थे, जैसे आकाश भी इस घर से दूर भागना चाहता हो।हवा में नमी और अजीब सी घुटन थी — हर साँस भारी लग रही थी।हवेली के भीतर सब अपने-अपने कमरों में चले गए थे, मगर नींद किसी को नहीं आ रही थी।दीवारों के पीछे से आती धीमी आवाज़ें, छत पर चलते कदमों की आहटें, और कभी-कभी खुद-ब-खुद खुलती खिड़कियाँ — ये सब किसी की रूह तक काँपाने के लिए काफी थीं।सविता अपने कमरे में अकेली थीं।टेबल पर लगी