“ये कैसा मजाक है अन्वेषा … ये सच नहीं हो सकता...” अपूर्व की आवाज़ काँप गई।लेकिन अन्वेषा ने उसके गाल पर हाथ रखा। उसका स्पर्श गर्म था, लेकिन आंखें ठंडी।“मैंने नासिर से वादा किया था... और अब मैं यहाँ हूँ। तुम भी आ गए... मगर मुझे अब भी इंतज़ार है... मेरी मौत का हिसाब बाकी है...”एक ठंडी हवा का झोंका आया, और तभी पुराने पीपल के पास ज़मीन में कुछ चमका , एक छोटा सा लोहे का तावीज़, जो आधा मिट्टी में धँसा था।अन्वेषा की निगाहें उस पर टिक गईं। उसने काँपते हाथों से उसे उठाया और अपनी मुट्ठी में