तीन महीने बीत चुके थे।होटल वही था, लहरें वही थीं, लेकिन कियारा की ज़िंदगी में सब कुछ बदल गया था।अब हर सुबह वो अयान के बिना शुरू होती और उसी की याद पर खत्म।वो अब भी वही कॉफ़ी मशीन इस्तेमाल करती थी, वही टेरेस पर जाती थी — पर अब वहाँ सिर्फ़ खामोशी उसका साथ देती थी।उसकी डायरी के पन्ने अब शब्दों से ज़्यादा इंतज़ार से भरे थे।हर पन्ने पर बस एक ही सवाल लिखा होता — “कब लौटेंगे आप?”हर हफ्ते अयान का एक ईमेल आता था — छोटा, लेकिन सुकूनभरा।“यहाँ का मौसम तुम्हारे शहर जैसा नहीं… पर हर सुबह