सुबह होटल की लाइट्स धीरे-धीरे बुझ रही थीं, लेकिन कियारा के भीतर जैसे कोई नई रौशनी जल उठी थी।वो बिस्तर पर बैठी खिड़की से बाहर देख रही थी — रात की बारिश ने आसमान को साफ कर दिया था।हवा में एक ताजगी थी, जैसे हर चीज़ नए आरंभ की बात कर रही हो।कल की सारी बातें अब भी उसके मन में गूंज रहीं थीं —“अगर मैं हूँ, तो तुम्हारी मुस्कान भी होगी।”वो लफ़्ज़ किसी वादे जैसे थे — कोमल, पर सच्चे।लेकिन सच्चे वादों के साथ हमेशा एक डर भी आता है।कियारा के दिल में वही डर था — क्या ये