एपिसोड 38 — “स्याही का श्राप”(कहानी: किताबें अब सांस लेने लगी हैं…)---1. हवेली की नई साँसदरभंगा की हवेली पर फिर वही नीली धुंध छा गई थी।सुबह का सूरज कहीं नहीं था — बस हवा में स्याही की गंध थी।टेबल पर रखी पाँचों किताबें अब शांत नहीं थीं।The Final Chapter अपने आप खुली पड़ी थी,और उसके पहले पन्ने पर लिखा उभर रहा था —> “हर शब्द एक जन्म है… हर पंक्ति एक मौत।”दीवारें हल्की-हल्की धड़क रही थीं,जैसे हवेली अब किसी दिल की तरह जीवित हो।गाँव के लोग दूर खड़े काँप रहे थे।किसी ने धीरे से कहा —“अब ये हवेली नहीं…