तन्हाई - 6 (अंतिम भाग)

एपिसोड 6 तन्हाईहर प्रेम का अर्थ साथ नहीं होता, समझ भी होना होता हैंसुबह की धूप खिड़की के पर्दों से छनकर कमरे में आई तो संध्या की आँखें खुलीं आज कुछ अजीब-सा सुकून था न वो बेचैनी, न कोई अधूरी प्रतीक्षा, बस एक धीमी-सी शांति, जैसे किसी लम्बे तूफ़ान के बाद समुद्र खुद को थाम लेता हैं।टेबल पर अब भी अमर का ट्रांसफर लेटर रखा था संध्या ने उसे उठाया, देखा, और मुस्कुरा दी।"तो अब सच में चले गए तुम...” उसने मन ही मन कहा, शब्दों में कोई कसक नहीं थी, बस एक स्वीकृति थी-कि हर रिश्ता हमेशा साथ रहने के