तन्हाई - 5

एपिसोड 5 तन्हाईप्रेम के अपराधबोध और आत्ममंथनसुबह की वह धूप जैसे अपराधबोध का परदा उठाने आई थी, संध्या बंगले के बरामदे में बैठी थी, हाथों में ठंडी होती चाय और मन में हजारों सवाल, रात की हर याद अब भी उसकी त्वचा पर साँस ले रही थी, कमरे की हवा अब भी अमर की उपस्थिति से भरी थी पर वो खुद वहाँ नहीं था, सुबह तड़के ही बिना कुछ कहे चला गया था, बस एक हल्की सी चिट्ठी छोड़ गया था."मैम, जो हुआ… वो शायद नियति थी, मैं न तो अपराधी हूँ, और न ही निर्दोष, लेकिन आज मैं अपने कर्तव्य