ख़ज़ाने का नक्शा - अध्याय 6

अध्याय 6: “सीरत-ए-इल्म — यमन का आख़िरी दरवेश”(जहाँ रूह की तलाश, ख़ज़ाने से बड़ी साबित होती है…) यमन की ज़मीन, रूह की ख़ुशबूछह दिन की यात्रा के बाद, रैयान और ज़ेहरा यमन की पहाड़ियों में पहुँच चुके थे। यहाँ की हवा में एक अजीब सी मिठास थी — जैसे हर सांस में कोई पुरानी दुआ घुली हो।उनके सामने था — “दरगाह-ए-क़मर”, एक ऐसी जगह जिसके बारे में कहा जाता था कि यहाँ “इल्म की आख़िरी साँस” अब भी मौजूद है।दरवाज़े पर वही शब्द लिखे थे जो रैयान पहले भी सुन चुका था —“इल्म की राह तुझसे तेरे अंदर गुज़रेगी।”ज़ेहरा ने