ख़ज़ाने का नक्शा - अध्याय 5

 अध्याय 5: “मौराबाद का क़िला — इल्म या अभिशाप?”(जहाँ हर जवाब के पीछे एक नया सवाल छिपा है…) क़िले की सरहदलखनऊ से सैकड़ों मील दूर, रेत के बीचोंबीच एक पुराना क़िला खड़ा था — क़िला मौराबाद। चारों तरफ़ सन्नाटा, टूटी मीनारें, और हवा में धूल की परतें। कभी ये क़िला “इल्म का शहर” कहलाता था — जहाँ सूफ़ी, फ़लसफ़ी और दरवेश लोग आते थे। मगर अब यहाँ सिर्फ़ परछाइयाँ थीं।रैयान ने जीप रोकी। क़िले का दरवाज़ा आधा टूटा हुआ था, उस पर उकेरे शब्द अब भी साफ़ पढ़े जा सकते थे:“जो दिल से आया, वही दरवाज़े के पार जाएगा।”ज़ेहरा ने