ख़ज़ाने का नक्शा - अध्याय 3

अध्याय 3: सब्र का दरवाज़ा(जहाँ इंतज़ार एक इबादत बन जाता है, और डर एक दुश्मन)दरगाह-ए-नूर की तंग सुरंग से निकलते हुए जब रैयान और ज़ेहरा ऊपर आए, तो आसमान में सुबह का उजाला फैल चुका था। चिड़ियों की चहचहाहट और दरगाह की मीनार से आती अज़ान — दोनों जैसे किसी नए आग़ाज़ की निशानी थीं।रैयान ने किताब उठाई — “इल्म-ए-मौराबाद”। उसके पहले सफ़े पर उर्दू में लिखा था:“इल्म दरवाज़ा खोलता है, मगर सब्र रास्ता दिखाता है।”नीचे एक नक़्शा बना था — इस बार लखनऊ से बहुत दूर, राजस्थान की रेत की ओर इशारा करता हुआ। वहाँ एक निशान था —