एपिसोड 37 — “पन्नों में दफ़्न चीख़ें”(सीरीज़: अधूरी किताब)---1. हवेली का मौनदरभंगा की हवेली पर सुबह का सूरज नहीं उगा।बस धुंध थी — और उस धुंध में किसी की चीख़ घुली हुई थी।दरवाज़े के पास वही तीन किताबें रखी थीं —The Soul Script, The Reader’s Copy, और The Last Reader।पर अब उनके पन्ने बंद नहीं थे —हर किताब अपने आप पलट रही थी,मानो कोई अंदर से बाहर निकलना चाहता हो।कमरे के कोने से आवाज़ आई —> “हम अभी जिंदा हैं… पन्नों में दफ़्न, मगर अधूरे…”हवा अचानक ठंडी हो गई।दीवारों पर पुराने नाम उभरने लगे —अनन्या, अंशुमान, आर्या, और अब