में और मेरे अहसास - 137

आहिस्ता आहिस्ता    जिन्दगी आहिस्ता आहिस्ता से समझाने लगी l सच्चाई से रूबरू कराकर के मुस्कुराने लगी ll   देखो तो जरूरत के समय साथ देने की जगह l वक्त हालात से जले हुए पे नमक लगाने लगी ll   एक के बाद एक सब साथ छोड़ चल देते हैं l सभल जा कोई किसीका नहीं है बताने लगी ll   ठोकरे खाकर भी आज तक नहीं समझ पाया l मासूमियत ओ नादानी पे हँसी उड़ाने लगी ll   कभी यू भी करवट लेगे लोग ये न जानते थे l आज लोगोँ का असली चहेरा दिखाने लगी ll १६-१०-२०२५