यशस्विनी - 24

कोरोना महामारी के दौर पर लघु उपन्यास यशस्विनी: अध्याय 24 : सहमा- सहमा सा हर मंज़र                           अगले दिन यशस्विनी चौराहे के पास निर्धारित स्थान पर पहुंची,जहां छोटे उस्ताद पिंटू से उसकी भेंट हुई थी।पिंटू वहाँ नहीं था।उसकी चलित मास्क की दुकान भी नहीं थी।उसने आसपास के लोगों से पूछने की कोशिश की, लेकिन कोई भी दुकान वाले कुछ बता नहीं पाए। इतना ही कहा,वह लड़का कल तो आया था, लेकिन आज सुबह से नहीं दिखा है।   यशस्विनी का मन कई तरह से सोचने लगा।उसे लगा,हो सकता है वह