एपिसोड 37 — “इश्क़ की परछाईं, रूह की दस्तक” (कहानी: मेरे इश्क़ में शामिल रूहानियत है) --- 1. हवेली का नया सवेरा दरभंगा की हवेली पर आज एक अजीब-सी शांति थी — न बहुत ठंडी, न बहुत गर्म… बस जैसे वक़्त ठहर गया हो। रूहाना बरामदे में खड़ी थी, नीले दीए की लौ को देखती हुई। कल रात की घटनाएँ अभी भी उसके ज़ेहन में गूंज रही थीं — वो ताबीज़, वो लिपि, और वो आवाज़ जो शीशे के भीतर से आई थी। अर्जुन पीछे आया, उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला