सन्नाटा और दर्द

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पहली चुप्पीकुछ बातें थीं, जो मैं कह नहीं सका।हर बार जब मैं उनके सामने आया,मुझे लगा कि शब्द मेरे मुंह में अटक जाएंगे।मैंने हँसने की कोशिश की,पर हँसी भी झूठी लग रही थी।वो सामने थी, पर मेरे अंदर की दुनिया बंद थी।हर नजर में कुछ कहना चाहता था,पर जीभ चुप रही।और उस पहली चुप्पी ने मेरे दिल में एक गहरी दरार छोड़ दी।रातें लंबी हो गईं, और मैं सिर्फ यही सोचता रहा कि अगर मैं बोल पाता,शायद कुछ बदल जाता।लेकिन अब सिर्फ वो खामोशी है,जो हर पल मुझे याद दिलाती है —कभी कुछ कहना जरूरी था, पर कह न सका।टूटे