(“कुछ मुलाकातें किस्मत नहीं करवाती — अधूरी मोहब्बत करवाती है।”)विवेक अब स्कूल में पढ़ाने लगा था।बच्चे उसे पसंद करते थे — उसकी क्लास में एक अलग सा सुकून था।वो समझाता नहीं था, महसूस करवाता था।शायद इसलिए कि खुद ज़िंदगी से इतना कुछ सीख चुका था कि अब किताबों से परे देखना जानता था।पर अंदर अब भी वही खालीपन था।हर दिन की शुरुआत किसी उम्मीद से नहीं, किसी याद से होती थी।वो अब मुस्कुराता था, पर आँखें अब भी वैसी ही थकी हुई थीं।एक दिन प्रिंसिपल ने कहा,> “विवेक जी, कल से एक नया छात्र आपकी क्लास में आएगा — थोड़ा