धीरे-धीरे ज़िंदगी में एक नई लय आने लगी थी।विवेक अब हर शाम नीचे आता, और अमित को पढ़ाने बैठता। आरती रसोई में होती, लेकिन कान हमेशा उस कमरे की ओर लगे रहते। जब विवेक किसी बात पर अमित से कहता —“डर लग रहा है? तो वही सवाल दो बार करो, डर खुद भाग जाएगा,”तो आरती के होंठों पर अनजाने में मुस्कान आ जाती। उसे ये सुनकर लगता, जैसे ये बात सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं, उसके पूरे जीवन के लिए कही गई हो।बारिश के मौसम की एक शाम थी। बिजली चली गई थी, हवा में मिट्टी की खुशबू थी। आरती