अद्वैत

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रात के ग्यारह बज रहे थे। दिल्ली की सर्द हवा में एक अजीब-सी नमी थी। सड़कें लगभग खाली थीं, बस स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी में धुंध ऐसे लटक रही थी जैसे किसी पुराने राज़ की परतें। उसी धुंध के बीच, एक पुरानी लाइब्रेरी की खिड़कियों में हल्की रौशनी जल रही थी।वहाँ बैठी थी माया — इतिहास की रिसर्च स्कॉलर। उसकी आँखों में नींद नहीं थी, बस किताबों की परछाइयाँ और सवाल थे। वो पिछले तीन महीनों से एक रहस्यमयी केस पर काम कर रही थी — "मॉर्निंग वेल हवेली" के बारे में। कहा जाता था कि उस हवेली में