अधूरी चाहत

रात का वक्त था। पहाड़ी रास्तों पर झींगुरों की आवाज़ें गूँज रही थीं। ठंडी हवा में पत्तों की सरसराहट किसी रहस्य की फुसफुसाहट सी लग रही थी।शहर से दूर, “राजगढ़” नाम के छोटे से कस्बे में एक पुराना बंगला था—“वर्मा हाउस”। कहते हैं, वहाँ आज भी किसी की “अधूरी चाहत” भटकती है।लोगों का मानना था कि जो भी उस बंगले में रात गुजारता है, वो या तो गायब हो जाता है, या पागल होकर लौटता है।पर एक आदमी था—अर्जुन राठौर, जो इन कहानियों से डरता नहीं था।पूर्व पुलिस अफसर, अब एक प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर। उसकी आंखों में सच्चाई खोजने की आग