--- 1. हवेली की स्याह सुबह दरभंगा की हवेली पर आज सुबह की धूप नहीं उतरी थी — आसमान पर काले बादल मंडरा रहे थे, और हवा में गुलाब की महक की जगह अब लोहे जैसी गंध थी — ख़ून की। सीढ़ियों के पास लाल निशान फैले थे। अर्जुन की हथेली अब भी कांप रही थी, और उसकी आँखें — नीली रौशनी से चमक रही थीं। रुमी भागती हुई आई। उसने अर्जुन के हाथ थामे — “ये क्या किया तुमने?” अर्जुन बोला — > “मैंने कुछ नहीं किया… किसी ने ये मेरे