मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 31

  ---   1. हवेली की स्याह सुबह   दरभंगा की हवेली पर आज सुबह की धूप नहीं उतरी थी — आसमान पर काले बादल मंडरा रहे थे, और हवा में गुलाब की महक की जगह अब लोहे जैसी गंध थी — ख़ून की।   सीढ़ियों के पास लाल निशान फैले थे। अर्जुन की हथेली अब भी कांप रही थी, और उसकी आँखें — नीली रौशनी से चमक रही थीं।   रुमी भागती हुई आई। उसने अर्जुन के हाथ थामे — “ये क्या किया तुमने?”   अर्जुन बोला —   > “मैंने कुछ नहीं किया… किसी ने ये मेरे