आत्मा, मन और शरीर — एक संतुलित दृष्टि आत्मा कोई रहस्यमय वस्तु नहीं है।वह पाँच तत्वों का केंद्र है —जहाँ सब कुछ पूर्ण संतुलन में ठहरा रहता है। शरीर उन्हीं तत्वों की परिधि है,जो गति में आकर रूप धारण करती है।और मन वह सेतु है,जहाँ स्थिरता और गति का स्पर्श होता है। जब मन असंतुलित होता है,तो तत्वों की यह संगति टूट जाती है —भय, लालच, क्रोध, कामना, पीड़ा जन्म लेते हैं।जब मन शांत होता है,तो तत्व फिर अपने स्वभाव में लौट आते हैं।यही लौटना ध्यान है,और वही मुक्ति है — इस जीवन में ही। संतुलन का अर्थ है —शरीर अपनी गति