गोवा का पुराना बंदरगाह उस शाम कुछ अजीब लग रहा था। लहरें बेचैनी से किनारों से टकरा रही थीं, जैसे किसी गहरे राज़ को छिपाए हुए हों। हवा में नमी और दर्द दोनों घुले थे। उसी पुराने पत्थर के किनारे पर, जहाँ कभी भीड़ होती थी, आज सिर्फ़ एक लड़की बैठी थी — आर्या।उसके हाथ में एक नीली चमड़े की डायरी थी। उस पर हल्के नमक के धब्बे थे, और ऊपर लिखा था —> “आरव की यादें।”आर्या की उंगलियाँ काँप रही थीं। वह हर शब्द को ऐसे छू रही थी, जैसे किसी पुराने ज़ख्म को कुरेद रही हो।दो साल बीत