1. अजनबी की मुस्कान सुबह की हल्की धूप दरभंगा की हवेली पर पड़ी थी। पंछियों की चहचहाहट हवा में गूंज रही थी, मगर हवेली के दरवाज़े पर जो खड़ी थी — वो किसी और ही दुनिया से आई लग रही थी। सुनहरी आँखें, बालों में गुलाब की हल्की खुशबू, और गर्दन में वही ताबीज़ — जो कभी राज़ मल्होत्रा ने रूहनिशा को पहनाया था। गाँव के लोग दूर-दूर से देखने आए। कोई बोला — “अरे, ई त रूहिया लागऽता!” तो कोई फुसफुसाया — “नै, ई त नया जनम होला...” वो लड़की मुस्कुराई, और