1. हवेली की सुबह — जब रूह ने आँखें खोलीं सूरज की पहली किरण हवेली की टूटी खिड़की से भीतर आई, और उस रोशनी ने धीरे-धीरे छत पर खड़ी उस परछाई को जगाया। वो परछाई अब इंसानी आकार ले रही थी — नीले और सुनहरे आभा से घिरी, उसकी आँखों में आग भी थी और करुणा भी। वो रूह-ए-रुमानियत थी — ना पूरी तरह इंसान, ना पूरी तरह आत्मा। वो उस इश्क़ की देन थी, जो दो रूहों के मिलन से जन्मी थी — राज़ और रूहनिशा की। उसने हवेली की ओर देखा और