सोने का पिंजरा - 23

पच्चीस साल बाद जब कबीर अपने राजसी महल से निकलकर अपने गाँव लौटा, तो हवाओं में एक अलग ही ठंडक थी. गाँव की पगडंडी पर उसकी गाडी धीरे- धीरे सरक रही थी. बाहर के शीशे से झाँकते ही उसे वही खेत, वही पेड और वही कच्चे घर दिखाई दिए, जिनसे उसका बचपन जुडा था.गाडी रुकी तो कबीर ने पहली बार अपने पैरों तले गाँव की मिट्टी को महसूस किया. उसने झुककर मुट्ठी भर मिट्टी उठाई, और होंठों से हल्की मुस्कान निकली—यही तो है असली दौलत. जिसकी खुशबू यूरोप या दुबई की हवाओं में कहाँ मिलती है।गाँव के बीचों- बीच उसके