सोने का पिंजरा - 20

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हवेली की रात जैसे किसी अनजाने उत्सव से निकलकर गहरी खामोशी में बदल चुकी थी. सितारे आसमान पर टिमटिमा रहे थे, लेकिन हवेली की ऊँची छतों के साए में हर चमक बुझी हुई लग रही थी. सभी मेहमान जा चुके थे, मगर हवेली का वैभव अब भी वहाँ खडा था—दीवारों पर लगी सुनहरी झूमरों की परछाईं, फर्श पर बिछे रेशमी कालीनों की नरमी, और हवा में मिली इत्र की हल्की खुशबू.कबीर अकेला अपने महलनुमा कमरे में खडा था. उसके चारों ओर वही दौलत थी जिसके चर्चे पूरे शहर में थे. एक तरफ स्वर्ण जडित अलमारियाँ, जिनमें दुर्लभ शराबों की बोतलें