सोने का पिंजरा - 17

सच्चाई का दंगल"हवेली की ऊँची छतों से झूलते झूमरों की सुनहरी रोशनी में सब कुछ शाही दिखाई दे रहा था, लेकिन उस चमक के पीछे छिपा अंधेरा और चालाकियाँ ज्यादा खतरनाक थीं.कबीर ने अपनी रेड वाइन का आखिरी घूँट लिया और क्रिस्टल ग्लास को धीरे से संगमरमर की मेज पर रख दिया. उसकी आँखें एक शिकारी की तरह चमक रही थीं—ठंडी, संयमित, और बेहद खतरनाक.आंटी सुनीता उसकी बगल में खडी थीं. उनकी उँगलियाँ काँप रही थीं, पर आवाज में सख्ती थी—कबीर, ये लोग आसानी से नहीं हारेंगे. यहाँ जितनी दौलत है, उतना ही जहर भी छिपा है।कबीर मुस्कुराया, आंटी, जहर