रात की हवा में महल की ऊँची खिडकियों से परछाइयाँ लंबी खिंची हुई थीं. कबीर ने तहखाने के पुराने तंजीम- कक्ष से निकलते हुए चंद सीढियाँ ऊपर चढीं — हर कदम पर उसके जूतों की आहट उसकी नसों में बिजली की तरह दौडती. नूरा, जो पीछे से आई थी, उसकी एक झलक लेकर समझ गई थी कि यह कोई साधारण Mission नहीं रहा — अब यह व्यक्तिगत बदला बन चुका था.कबीर( धीरे से, अपने मन से) जो भी सच है — उसे बाहर निकालना होगा. आज नहीं तो कभी नहीं.नूरा ने उसकी बाजू में काटते हुए कहा,नूरा: तुम्हें अपने साथियों