लघु उपन्यास यशस्विनी: अध्याय 22: कोरोना काल: क्या मुझे और मास्क मिल सकते हैं? इतिहास में संभवतः ऐसा पहली बार हुआ था जब कोरोना ने धर्मस्थलों के भी द्वार बंद करवा दिए।यशस्विनी विचार करने लगी कि कहीं न कहीं इस बीमारी के उद्भव और प्रसार में मानव की लापरवाही की बहुत बड़ी भूमिका है। देश की सवा अरब के लगभग आबादी घरों में कैद है। यशस्विनी ने रात में रोहित को फोन लगाया और कहा, "कैसे हो रोहित?"" मैं ठीक हूं यशस्विनी, तुम कैसी हो?"" मैं भी ठीक हूं रोहित। यह कठिन समय है। हमें कोरोनावायरस के शरीर पर पड़ने वाले