कभी तो पास मेरे आओ

कभी तो पास मेरे आओ कॉलेज की लाइब्रेरी का वो कोना… जहाँ किताबें ज्यादा और खामोशियाँ गहरी होती थीं। वहीं पर अक्सर आरव की नज़रें किसी और किताब में उलझ जाती थीं—किताबों में नहीं बल्कि उसकी मुस्कान में।वो लड़की… जिसका नाम सिया था। सिया का अंदाज़ ही अलग था—बालों को हल्का-सा पीछे कर, आँखों में चमक लिए, हमेशा कुछ नया सीखने का जुनून। आरव की दुनिया जैसे उसी पल थम जाती जब वो पास से गुजरती।आरव उसे कई महीनों से देख रहा था, मगर अब तक हिम्मत नहीं जुटा पाया कि जाकर कह दे—"सिया, मुझे तुमसे कुछ कहना है।"---पहली