दिव्या दृष्टी: एक अनदेखा सच

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अँधेरे में परछाई या रात की दस्तक?” कहते हैं... कुछ चीज़ें सिर्फ अंधेरे में ही दिखाई देती हैं... और कुछ अंधेरे तो इतनी खौफनाक होती हैं की उनहे बया करना मुशकिल हो जाता हैं दो हफ़्ते कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला। कॉलेज से लौटकर हम हर शाम उसी पुराने मकान — हमारे पी.जी. — में लौटते थे, और धीरे-धीरे वो जगह भी हमें अपनी सी लगने लगी थी। पड़ोस के बच्चे, सरला आँटी, नेहा — सब हमसे घुल-मिल गए थे। पर फिर भी... कुछ था... जो हर रात मुझे चैन से सोने नहीं देता था। उस रात अमावस्या