गाँव की चौपाल पर धूल बैठी ही थी कि अचानक लोहे की खड़खड़ाहट फिर से गूँज उठी।नवगढ़ की सेना के बीच से, सुनहरे काठी पर सवार, महामंत्री वर्धन त्रिवेशी प्रकट हुआ।उसके चेहरे पर वही स्थायी ठंडक, होंठों पर हल्की सी मुस्कान — जो मुस्कान कम, घमंड ज़्यादा लगती थी।उसकी चाल में कोई जल्दी नहीं थी—पर हर कदम में आदेश छिपा था।सिर ऊँचा, आँखें सीधी, और होंठों पर वैसी मुस्कान, जिसमें अभिवादन से अधिक अपमान होता है।उसका परिधान राजसभा की रेशमी परंपरा का था, पर उसके चेहरे पर रेगिस्तान की कठोरता।घोड़े से उतरते हुए उसने ऐसे देखा मानो यह गाँव, यह