रक्तरेखा - 14

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चंद्रवा की सुबह उस दिन कुछ ज़्यादा ही शांत थी।हवा में धान की हल्की गंध तैर रही थी, तालाब के पानी पर सूरज की किरणें चमक रही थीं, और कमल के फूल अपनी पूरी आभा में खिले थे। औरतें घड़ों में पानी भरते हुए धीरे-धीरे हँस रही थीं—किसी की बात पर ठहाका, किसी की झेंपी मुस्कान। बच्चे किनारे पर रस्सी कूद रहे थे, और कभी-कभी हँसते-चिल्लाते हुए गिर पड़ते। जीवन, जैसा था, अपनी सहज धुन में चल रहा था।आर्यन तालाब की सीढ़ियों पर बैठा, पत्थर चुनकर पानी में उछाल रहा था। हर पत्थर के साथ फैलती लहरों में उसे कुछ