मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 21

रात की ठंडी हवा अब भी हवेली के गलियारों में सरसराती फिर रही थी। नीली और सुनहरी लपटों की झिलमिलाहट दीवारों पर अजीब से साए बना रही थी — जैसे हवेली खुद अब किसी रहस्य को कहने को बेचैन हो।राज़ और अनाया छत पर खड़े थे। उनके बीच खामोशी थी, मगर उस खामोशी में भी एक गहरी मोहब्बत बह रही थी। आसमान में सुनहरा निशान अब धीरे-धीरे फैलता जा रहा था, और उसमें से हल्की फुसफुसाहटें सुनाई दे रही थीं — जैसे कोई रूह बोलने की कोशिश कर रही हो।अनाया ने धीमे स्वर में कहा,“राज़… ये आवाज़… सुन रहे हो