---️ एपिसोड 21 : “मिट्टी के नीचे दबी आवाज़”रात फिर वही थी — भारी, ठंडी और धीमी साँसों से भरी।दरभंगा की पुरानी हवेली अब राख में मिल चुकी थी, पर उसकी आवाज़... अब भी ज़िंदा थी।रमाकांत ने तीन दिन बाद उस जगह कदम रखा जहाँ हवेली हुआ करती थी।अब वहाँ बस मिट्टी थी, और मिट्टी के नीचे किसी की छुपी पुकार।हवा में हल्की धूप थी, लेकिन जैसे-जैसे वह आगे बढ़ा, चारों ओर फिर वही अजीब सन्नाटा उतर आया।“ई ज़मीन अब भी गरम बा…” उसने झुककर हाथ रखा —मिट्टी सचमुच धड़क रही थी।“लगता है कहानी ख़त्म नइखे भइनी…” उसने बुदबुदाया।उसी वक़्त