अर्जुन

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अर्जुन (1985): जब एक आम लड़का व्यवस्था से भिड़ गया1980 के दशक का भारत एक कठिन दौर से गुजर रहा था। बेरोजगारी आसमान छू रही थी, भ्रष्टाचार ज़मीन से जुड़ चुका था, और आम आदमी की आवाज़ सरकारों तक पहुँच ही नहीं पा रही थी। शहरों में पढ़े-लिखे नौजवान दर-दर की ठोकरें खा रहे थे, और गांवों में लोग ज़िंदगी के सबसे बुनियादी सवालों से जूझ रहे थे। ऐसे समय में हिंदी सिनेमा ने कुछ कहानियाँ दीं जो उस दौर की सच्चाई को पर्दे पर बिना लाग-लपेट के पेश करती थीं। उन्हीं में से एक थी “अर्जुन” — जो आज