ख़ामोश मोहब्बत - 3

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*कहानी का नाम: "ख़ामोश मोहब्बत – भाग 3"*  *(जब मोहब्बत किताब बन गई और हर दिल की ज़बान बन बैठी...)*---* 1. एक साल बाद — बनारस*गंगा के घाट अब भी वैसे ही थे — शांत, गहरे, और सच्चाई से भरे। फर्क बस इतना था कि अब वहाँ दो साये अक्सर दिखाई देते थे — *ज़ैनब और यूसुफ़*, जो अब सिर्फ आशिक़ नहीं, *रफ़ीक़* बन चुके थे।  उनकी मोहब्बत अब सिर्फ तन्हाई में सिमटी हुई नहीं थी, बल्कि अब वो *लफ़्ज़ों की शक्ल* ले चुकी थी। दोनों ने मिलकर एक किताब पूरी की —  *“ख़ामोश मोहब्बत”* —  एक मोहब्बत की दास्तान