ख़ामोश मोहब्बत - 2

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*कहानी का नाम: "ख़ामोश मोहब्बत – भाग 2"*  *(जहाँ मोहब्बत ने इम्तिहान लिया, वहीं तक़दीर ने राह दिखाई…)*  ---रौशनी की पीली किरणें बनारस की गलियों में शराब-सा फैल रही थीं। घाटों पर गंगा का पानी धीमी आवाज़ में गीत गा रहा था, और हवाओं में एक अजीब सी तन्हाई थी — जैसे ज़माने की हर भीड़ ने खुद को सुनाया हो कि यहाँ कोई मोहब्बत अधूरी खड़ी है।ज़ैनब की ज़िन्दगी अब उस लाइब्रेरी की ख़िड़की से शुरू होती थी, जहां वह शहादत-ए-इश्क़ की शख्सियत बन चुकी थी। हर सुबह हठपूर्वक उठती, दुपट्टा संभालती और बाहर निकलती — जैसे उसका हर